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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

सच्चा दोस्त 

दुनिया में अगर कोई रिश्ता सबसे प्यारा है तो वह है दोस्ती का रिश्ता । यह एक ऐसा रिश्ता है जिसका वर्णन करना बहुत कठिन है । दिल की बात बिना कुछ कहे जान लेने वाला व्यक्ति एक सच्चा दोस्त कहलाता है । आंखों में आंसू आए बिना ही दर्द को जो पहचान ले वह सच्चा दोस्त कहलाता है । जिसे दिल की बात सुनाने के लिए दिल बेताब रहे वह सच्चा दोस्त कहलाता है । मदद मांगने से पहले ही जो मदद करने को तैयार रहे, वह एक सच्चा दोस्त कहलाता है । पापा मम्मी की डांट से बचाने के लिए जो बिना डरे सफेद झूठ बोलकर साफ बचा ले जाए वह एक सच्चा दोस्त ही हो सकता है ।

जब हम छोटे छोटे बच्चे थे और "लंगोट" पहन कर घूमा करते थे । मौहल्ले में दिन भर मटर गश्ती करते फिरते थे तब हमारी जान पहचान हमारे जैसे ही अन्य "शोहदों" से हुई । खेल कोई अकेले तो बैठकर खेले नहीं जाते , आजकल की तरह कि मोबाइल हाथ में लो और अकेले अकेले दुनिया भर के खेल खेल लो । तब आउटडोर खेल ही होते थे जिनके लिए दोस्तों की जरूरत हुआ करती थी । खेल और शैतानी , एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । करने योग्य काम दो ही थे उन दिनों में । एक शैतानी करना और दूसरा खेल खेलना। । इन दोनों गितिविधियों के लिए दूसरे बच्चे भी होने चाहिए । और यह कहावत तो आप सबने सुनी ही होगी कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है । खेलने कि लिए और साथियों की आवश्यकता ने दोस्ती को जन्म दे दिया । बस, तब से जो दोस्ती बनी , वह अब तक बरकरार है । 

खेलों से शुरू हुई दोस्ती का और विस्तार होने लगा । खेल मैदान से चलकर स्कूल में आ गए । वहां पर एक अजीब संकट पैदा हो गया । हमारे कुछ दोस्त ऐसे निकले जिनको स्कूल नाम की संस्था "जेल" जैसी लगती थी । इसलिए वे स्कूल नहीं जाने के अनेक बहाने बनाते थे । लेकिन हमारे गुरुजी भी कम नहीं थे । यह कहावत भी तो है कि आखिर "गुरू" तो गुरू होता है । वह छात्रों के समस्त हथकंडे जानता है । इसके लिए गुरूजी ने व्यवस्था कर ली थी ।  जो भी लड़का स्कूल नहीं आता , उसके लिए "डोली" भेजा करते थे गुरूजी । जो लड़का स्कूल नहीं आता उसके लिए गुरूजी कहते थे कि उसके पैरों में मेंहदी लगी हुई है इसलिए वो कैसे आ सकता है ? अतः उसे लेने के लिए चार लड़के जाओ और उसे "डोली" में बैठाकर ले आओ । फिर हम जैसे चार लड़के भेजे जाते और ऐसे लड़कों को "टांगाटोली" करके लेकर आते । 

शाम को जब हम खेल मैदान में मिले तो हमारी दोस्ती खतरे में नजर आने लगी  । दोस्त कहने लगा "कैसे दोस्त हो तुम ? टांगा टोली करके लेकर जाते हो और अपने आप को दोस्त कहते हो ? धिक्कार है तुम पर " 

हमने कहा "हम क्या करते ? गुरुजी का आदेश था और गुरुजी के आदेश का पालन करना हमारा कर्तव्य था । इसलिए वो सब करना पड़ा" । 
सच्चा दोस्त ही दोस्त की मजबूरी जानता है । वह भी हमारी मजबूरी समझ गया । लेकिन समस्या तो वहीं की वहीं रह गई । उसे स्कूल नहीं जाना था और हम गुरुजी के आदेश की अवहेलना नहीं कर सकते थे । 

कहते हैं कि वह दोस्ती ही क्या जो एक दोस्त को बीच भंवर में छोड़ दे । हमने भी एक रास्ता निकाल लिया । सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे । दोस्त से कह दिया कि वह घर से बैग लेकर चला जाए और रास्ते में कहीं भी खेलने रुक जाये । घरवाले भी खुश । स्कूल में हाजिरी के समय हम पीछे से बोल देंगे " यस सर" । दोस्ती भी बच जाएगी और काम भी हो जाएगा । उस दिन से हम दोनों "सच्चे दोस्त" बन गए । मुसीबत में जो सात दे, वही सच्चा दोस्त होता है । ने सिद्ध कर,दिखाया था ।

परीक्षाओं में भी अपनी दोस्ती का जलवा ऐसा ही रहा था । पहले हम अपना पेपर करते फिर दोस्त का । कभी फेल नहीं होने दिया अपने दोस्त को । पक्की दोस्ती

एक दिन बड़ी समस्या पैदा हो गई । हम चार पांच दोस्त बैठकर "पार्टी" कर रहे थे कि हमारे सच्चे दोस्त की मम्मी का फोन आया " फलां अभी घर नहीं पहुंचा है , तुम्हारे साथ है क्या " ? 

हमने खतरे की घंटी सुन ली थी । लगा की दोस्त संकट में है , उसकी मदद करना हमारा धर्म है । हमने भी कह दिया " आप बिल्कुल चिंता ना करें , आंटी जी । वह हमारे ही साथ है और हमारे साथ ही पढ़ रहा है" । 
"पक्का" ? 
"जी , पक्का आंटी जी" 
"फिर ये मेरे पास कौन है" ? 

आंटी जी हमारे साथ खेल कर गई । अब तो चोरी पकड़ी जा चुकी थी , अब क्या हो सकता था ? हम एक सच्चे और अच्छे दोस्त बनने के चक्कर में झूठे साबित हो गये । लेकिन दोस्त के लिए तो सब कुछ न्यौछावर कर दिया जाता है । और दोस्ती में तो यह सब चलता ही रहता है । आंटी जी ने दोस्त से कह दिया कि हमारे जैसे दोस्तों के साथ नहीं रहेगा वो । मगर दोस्ती तो दोस्ती है ऐसे कैसे मान सकती है ? आखिर, पक्के वाले दोस्त थे इतनी आसानी से जुदा कैसे होते ? आंटी जी को कह तो दिया मगर जुदा कभी नहीं हुए ।

एक बार की बात है जब हम कॉलेज में पढ़ते थे तो हमारे दोस्त की "बंक" मारने की आदत पुरानी थी । हम उनके फर्जी हस्ताक्षर कर दिया करते थे । एक दिन प्रोफेसर साहब ने हस्ताक्षर गिन लिए । हस्ताक्षर 46 थे जबकि क्लास में मौजूद छात्रों की संख्या 45 ही थी । तब एक एक को नाम ले लेकर खड़ा किया गया । तो हमारे सच्चे दोस्त अनुपस्थित पाये गये । लेकिन रजिस्टर में उनके हस्ताक्षर थे । सारा शक हमारे ऊपर गया । हस्तलेख विशेषज्ञ को बुलवाया गया और जांच की गई तो हमारी कारिस्तानी पकड़ में आ गई । मामला निदेशक तक गया । उन्होंने हमसे इसका कारण पूछा तो हमने एक सच्चे और अच्छे दोस्त वाली बात बताई । वे हमारी सच बोलने की हिम्मत और अपनी दोस्ती की बात से प्रसन्न हो गये और हमें एक सच्चा दोस्त घोषित कर दिया गया और हम दोनों का सबके सामने स्टेज पर जोरदार स्वागत किया गया । हमारे फोटो पूरी कॉलेज में लगवाये गये । हमें कहा गया कि हमारी दोस्ती की कहानी हर बच्चों तक पहुंचनी चाहिए इसलिए हमको एक साल और कॉलेज में पढने दिया गया । इस घटना से हमारी दोस्ती के चर्चे पूरी कॉलेज में होने लगे । 
मगर इस दोस्ती के कारण एक और समस्या उत्पन्न हो गई । हमारी एक सहपाठिन से हम दोनों को ही प्यार हो गया । पहले तो पता ही नहीं चला कि हमारा दोस्त भी उससे प्यार करता है । मगर जब पता चला तो हमने तय कर लिया कि दोस्ती की खातिर अपने प्यार को कुर्बान कर देंगे । मगर दोस्त तो दोस्त होते हैं । ऐसा ही प्रण हमारे दोस्त ने कर लिया । दोनों ही अपने प्यार की कुर्बानी दे रहे थे । हमारी सहपाठिन भौंचक्की रह गई । उसने भी हमको धर्मसंकट में डालना ठीक नहीं समझा और किसी "तीसरे" के साथ निकल ली । इससे हमारी दोस्ती और भी मजबूत हो गई । 

ऐसे अनगिनत किस्से भरे पड़े हैं हमारी दोस्ती के । कहां तक सुनाएं ? ये समझ लो कि एक जान दो बदन हैं हम । जुकाम उसे होती है और नाक मेरी बहने लगती है । इसी तरह बुखार मुझे होता है और शरीर उसका गर्म होता है । ऐसी है हमारी दोस्ती । अब आप ही बताइए , हम हैं ना सच्चे दोस्त ?


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6 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 12:50 PM

Bahut khub 👌

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Chudhary

14-Jul-2022 10:29 PM

Nice

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shweta soni

12-Jul-2022 08:13 PM

Bahot hi achhi rachna

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